Tuesday, August 25, 2009

राम निरंजन भजन

कबीराचे हे विलक्षण भजन आणि कुमार गंधर्वांच्या गाण्यातली उत्कट गोडी (ऐका) - जणू गंगा-यमुनेचे प्रयागच! स्वरांच्या ओघात यथेच्छ स्नान झाल्यावर अर्थसुद्धा अवश्य वाचा.

राम निरंजन न्यारा रे
अंजन सकल पसारा रे...

अंजन उत्पति ॐकार
अंजन मांगे सब विस्तार
अंजन ब्रहमा शंकर इन्द्र
अंजन गोपिसंगी गोविन्द रे

अंजन वाणी अंजन वेद
अंजन किया ना ना भेद
अंजन विद्या पाठ पुराण
अंजन हो कत कत ही ज्ञान रे

अंजन पाती अंजन देव
अंजन की करे अंजन सेव
अंजन नाचे अंजन गावे
अंजन भेष अनंत दिखावे रे

अंजन कहाँ कहाँ लग केता
दान पुनी तप तीरथ जेता
कहे कबीर कोई बिरला जागे
अंजन छाडी अनंत ही दागे रे

राम निरंजन न्यारा रे
अंजन सकल पसारा रे...

1 Comments:

At August 26, 2009 at 12:26 AM, Blogger Ashutosh Sovani said...

Mind blowing explanation. Will need some time to tie it back to the Ssnskrit words, but it will be fun. Will try sometime. Welcome back, champ. Where have you been - for so long?

 

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