Saturday, September 05, 2009

A golden oldie - for all musafirs...

साहिर लुधियानवी और सचिन देव बर्मन की रचना :

वहां कौन है तेरा, मुसाफिर, जाएगा कहाँ
दम ले ले घड़ी भर, ये छाया, पायेगा कहाँ

बीत गए दिन, प्यार के पलछिन,सपना बनी वो रातें
भूल गए वो, तू भी भुला दे, प्यार की वो मुलाकातें
सब दूर अँधेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ...
दम ले ले घड़ी भर, ये छाया, पायेगा कहाँ...

कोई भी तेरी, राह न देखे, नैन बिछाए न कोई
दर्द से तेरे कोई न तड़पा, आँख किसीकी न रोई
नहीं किसको तू मेरा,मुसाफिर जाएगा कहाँ...
दम ले ले घड़ी भर ये छाया पायेगा कहाँ...

कहते हैं ग्यानी, दुनिया है पानी, पानी पे लिखी लिखाई
है सब की देखी, है सबकी जानी, हाथ किसी के न आयी
कुछ तेरा न मेरा, मुसाफिर जाएगा कहाँ...
दम ले ले घड़ी भर, ये छाया, पायेगा कहाँ...